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खेल है बड़ा ! कमीशन लो, किताबें बदलो कवर नया, कंटेंट वही…जेब पर भारी !

हर साल दस हजार रुपए तक की लगती चपत !

 

*महंगी किताबों की टेंशन, जो प्रकाशक ज्यादा कमीशन देता उसी की किताबें स्कूल में होतीं लागू*

*जयपुर*

अप्रेल में नया सत्र शुरू होने के साथ अभिभावकों को स्कूल फीस की ही टेंशन नहीं होती, हर साल बदल जाने वाली किताबों को लेकर भी वे चिंतित रहते हैं।

स्कूल मोटे कमीशन के चक्कर में किताबों को बदल देते हैं। खेल ऐसा है कि जो प्रकाशक ज्यादा कमीशन देता है, उसी की किताबों को स्कूल में लागू कर दिया जाता है। परीक्षा परिणाम आने के साथ ही स्कूलों की ओर से हर साल किताबों में आंशिक बदलाव का बहाना बनाया जा रहा है और अभिभावकों को नई किताबें खरीदने की सूचना भेजी जा रही है। हकीकत यह है कि पाठ्यक्रम में कोई बदलाव नहीं किया जाता, बस किताबों का कवर पेज और रेट बदल जाती हैं। स्कूलों की ओर से की जाने वाली इस लूट का असर अभिभावकों पर पड़ता है। हर साल उनकी जेब पर आठ से दस हजार रुपए तक का अतिरिक्त भार आ जाता है। इसके लिए स्कूल परिसर में ही किताबों के काउंटर बना लिए हैं। स्कूल से ही किताब खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है

*किताबों के काउंटर…पर कार्रवाई नहीं*

स्कूलों की ओर से परिसर में ही किताबों के काउंटर खोल दिए जाते हैं यहीं से किताबें लेने का दबाव बनाया जाता है। बाजार से खरीदने पर किताब को मान्य नहीं किया जाता रेट भी अधिक वसूली जाती है। शिक्षा विभाग और सीबीएसई ने स्कूलों में ऐसे काउंटर खोलने पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद विभाग कोई कार्रवाई नहीं करता

*अभिभावकों ने यों बयां की पीड़ा*

1.गोपालपुरा निवासी रुचि अग्रवाल ने बताया कि एक निजी स्कूल की ओर से दबाव बनाया जा रहा है कि स्कूल से ही नई किताबें खरीदी जाएं। उनके अनुसार पिछले साल पुरानी किताब खरीदी थी। लेकिन इस बार स्कूल की ओर से निर्देश दिए गए हैं कि पुरानी किताबें नहीं चलेंगी

2.चित्रकूट निवासी सागर सिंह ने बताया कि बेटे के स्कूल से निर्देश मिले हैं कि निर्धारित दुकान से ही किताबें ली जाएं। उन्होंने बताया कि बाजार में दूसरी दुकानों पर पता किया लेकिन किताबें नहीं मिलीं। ऐसे में अब स्कूल की दुकान से ही पुस्तक खरीदने की मजबूरी है !

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